Translated by Shveta Sarda
Voice: Shamsher Ali
Recording: Bhagwati Prasad
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ऑनतुआन दे सेंत एक्सुपेरी की कहानी में नन्हे राजकुमार की मुलाकात एक ऐसे व्यापारी से होती है जो सितारे संचित करता है — सिर्फ़ इस उद्देश्य से कि और सितारे संचित कर सके। नन्हा राजकुमार हैरान है। उसके पास महज़ एक फूल है, जिसे वो रोज़ पानी देता है, और तीन ज्वाला-मुखी हैं, जिनकी वो हर हफ़्ते सफ़ाई करता है। “अपने फूल और अपने ज्वाला-मुखियों के मैं कुछ काम आ जाता हूँ,” वो व्यापारी से कहता है, “पर तुम उन सितारों के किसी काम के नहीं जिन पर तुम्हारा स्वामित्व है।”
आज ढेरों कंपनियों का नॉलेज-विद्या-इल्म पर कब्ज़ा है। सबसे बड़े पांडित्य-लिपि प्रकाशक एल्सेविएर को ही ले लीजिये। इनका 37% सालाना मुनाफ़ा तीखी तकरार में खड़ा है बढ़ती फ़ीस, डूबते छात्र क़र्ज़, और सहायक फ़ैकल्टी के मुफ़लिस वेतन के। एल्सेविएर का शैक्षिक साधनों के सबसे बड़े डेटाबेसों पर कब्ज़ा है, और इन्हें इस्तेमाल करने के अधिकार का दाम इतना अधिक है कि हार्वर्ड — जो कि सबसे धनी यूनिवर्सिटियों में से है — तक ने इन्हें आगे इस्तेमाल करना अपने लिए नामुमकिन बताया है। हार्वर्ड लाइब्रेरी के पूर्व-डायरेक्टर रोबर्ट डेंटन का कहना है, “हम, यानि फैकल्टी, रिसर्च करते हैं, पेपर लिखते हैं, दूसरे रिसर्चरों द्वारा लिखे पेपरों को रेफ़री करते हैं, संपादन कमिटियों में भाग लेते हैं, बिलकुल मुफ़्त... और फिर अपने ही श्रम के नतीजे हमें बेशुमार दामों पर खरीदने पड़ते हैं।” कितनी ही चीज़ें हैं जो कि लोक धन से होती हैं, और जिनसे प्रकाशकों को फ़ायदा होता है, जैसे कि, और ख़ासतौर से, हमजोली समालोचना (पीयर रिव्यु), जिससे प्रकाशकों का खरापन स्थापित होता है। और फिर भी जर्नल-लेखों का मूल्य यूँ रखा जाता है जिससे कितने ही शैक्षिक — और विश्व-भर में वो सभी जो उन्हें पढ़ सकते हैं — विज्ञान से वंचित रखे जाते हैं। उन्हें पढ़ पाना कुछ का विशेषाधिकार बन जाता है।
एल्सेविएर ने हाल ही में न्यू यॉर्क में लाइब्रेरी-जेनेसिस और साई-हब के ख़िलाफ़ सर्वाधिकार उल्लंघन (कॉपीराइट इंफ्रिंजमेंट) का केस दायर कर, लाखों डॉलर के हर्जाने की माँग की है। इससे बहुत बड़ा आघात लगा है — न सिर्फ़ इन वेबसाइटों को, बल्कि दुनिया भर में उन हज़ारों रिसर्चरों को भी, जिनके लिए ये इकलौते स्रोत्र हैं शैक्षिक-बौद्धिक साधनों के। सोशल मीडिया, मेलिंग लिस्ट और ई.आर.सी. चैनेलों पर प्रकाशन और लेख तलाशते उनके बेचैन संदेश फैलते जा रहे हैं।
न्यू यॉर्क ज़िला न्यायालय अभी अपना निर्णय सुना ही रहा था जब ख़बर फैली कि मान्यता प्राप्त जर्नल ‘लिंगुआ’ के सम्पूर्ण संपादक-मंडल ने इस्तीफ़ा दे दिया है, और एल्सेविएर के मुक्त प्रवेश (ओपन एक्सेस) होने से इंकार करने और लेखकों और उनकी शैक्षिक संस्थाओं पर अत्याधिक फ़ीस का बोझ लादने को इसका ज़िम्मेदार ठहराया है। व्यवस्था टूटी हुई है, टूट रही है। हम इस खत को लिख ही रहे हैं और एक ख़त और घूम रहा है, जिसमें माँग की जा रही है कि टेलर एंड फ़्रांसिस ‘ऐशगेट’ को बंद न करे। मानविकी के स्वतंत्र प्रकाशक ‘ऐशगेट’ को 2015 के शुरू में टेलर एंड फ़्रांसिस ने ख़रीद लिया बाज़ार में अपना एकाधिपत्य स्थापित करने के लिए। चाहे वो लेखक हो, पाठक हो, संपादक हो, ये टूट रही व्यवस्था जिस-जिस पर टिकी है उसी पर आघात कर रही है।
आज इंसान के पास वो माध्यम और तरीके हैं जिनसे आसानी से, और कम खर्च पे, नॉलेज-विद्या-इल्म सबके हो सकते हैं। पर अड़चनें हैं — नॉलेज-विद्या-इल्म को घेर के, बेच के, मुनाफ़े की फ़िराक में, ख़ुद को बौद्धिक प्रतिष्ठा देने के केंद्र बना कर ये प्रकाशक लोक-हित को किनारे कर देते हैं। कमर्शियल प्रकाशक मुक्त, आज़ाद नॉलेज-विद्या-इल्म की राहों पर आक्रमण करते हैं — हमें मुजरिम करार करते हैं, हमारे नायक-नायिकाओं पर मुक़दमे थोपते हैं, हमारे किताबघरों को उजाड़ देते हैं, बार-बार। लाइब्रेरी-जेनेसिस और साइंस-हब से पहले library.nu और गीगापीडिया थे, गीगापीडिया से पहले textz.com था। एक वो समय भी था जब कुछ नहीं था, और न्यायालय और क़ानून की मदद से ये प्रकाशक हमें वापस वहीं, उसी स्थिति में ले जाने की कोशिश में लगे हैं।
लाइब्रेरी-जेनेसिस और साई-हब के ख़िलाफ़ एल्सेविएर के मुक़दमे में जज ने कहा, "कॉपीराइट सामग्री को किसी बाह्य वेबसाइट के ज़रिये महज़ मुफ़्त उपलब्ध करा देना लोक-हित को हानि पहुँचाना है।” पर अलेक्सांद्रा एलबक्यान की फ़रियाद पढ़ें तो दाँव इससे कहीं ज़्यादा के हैं: “एल्सेविएर अगर हमारे प्रोजेक्ट बंद करने में कामयाब हो जाती है, या उन्हें डार्कनेट में धकेल देती है, तो इससे एक महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रदर्शित होगा — कि पब्लिक का कोई हक़ नहीं है नॉलेज-विद्या-इल्म पर।”
हम रोज़, और बहुत बड़े पैमाने पर, प्रमाणित करते हैं कि व्यवस्था टूट चुकी है। प्रकाशकों की पीठ पीछे अपने लेख एक-दूसरे को पढ़ने के लिए देते हैं, लेख और किताबें मुहैया करने के रास्तों में खड़े किये गए ख़रीद-बिक्री के दायरों का उल्लंघन करते हैं, किताबों को स्कैन कर ऑनलाइन किताबघरों में चढ़ाते हैं। 37 प्रतिशत मुनाफ़ों के उलट ये पहलू है: विद्या के हमारे सामूहिक कोष पनपते हैं टूटी व्यवस्था की तरेड़ों में। हम सब नॉलेज के पालक हैं, उन ढाँचों के रखवाले हैं जिन पर हम सभी निर्भर हैं नॉलेज के उत्पादन के लिए, हम सब उर्वर पर भंगुर सामूहिक कोषों के मुहाफ़िज़ हैं। मुहाफ़िज़ और रखवाला होना मतलब डाउनलोड करना, साँझा करना, पढ़ना, लिखना, समीक्षा करना, संपादन करना, डिजिटाइज़ करना, आर्काइव करना, किताबघर बरकरार रखना, सब का करना। यानि हमारे नॉलेज-साँझा के काम आना, न कि उसे संपत्ति बनाना।
सात साल पहले आरन श्वार्टज़ — जिसने बहुत जोखम उठा कर वो किया जो हम आज यहाँ आपसे करने को कह रहे हैं — ने लिखा: “हमें करना ये है कि जानकारी को लें — वो चाहे कहीं भी संग्रहित की गयी हो — और उसकी प्रतियाँ बना, उसे दुनिया भर में बाँट दें। जो भी कॉपीराइट से बाहर आ चुका है, आ रहा है, उसे बटोर कर अर्काइव में शामिल कर दें। गुप्त डेटाबेस खरीद कर उन्हें इंटरनेट पर चढ़ा दें। विज्ञान सम्बन्धी जर्नल डाउनलोड कर उन्हें फ़ाइल-शेयरिंग संजालों में छोड़ दें। हमें "गुरिला ओपन एक्सेस" के लिए लड़ना होगा। हम इतने हों, और दुनिया भर में हों, कि न सिर्फ़ नॉलेज के निजीकरण के ख़िलाफ़ एक बुलंद सन्देश बनें, बल्कि निजीकरण को अतीत में धकेल दें। क्या आप चलेंगे हमारे साथ?”
हम आज एक निर्णायक मोड़ पे हैं। वक़्त आ गया है स्वीकार करें कि नॉलेज के हमारे विशाल सामूहिक कोष का होना, उसकी महज़ मौजूदगी, सामूहिक ख़िलाफ़त है। वक़्त आ गया है कि छिपना छोड़ें और विरोध की इस क्रिया से अपना नाम संलग्न करें। आप अकेले नहीं; हम जैसे कई हैं। हमें ये पता है क्योंकि इंटरनेट पर किताबघर जैसे मूलभूत आवश्यक तत्वों को खो देने का गुस्सा, डर, मायूसी फैल रहा है। वक़्त आ गया है की हम सब मुहाफ़िज़, हम इंसान हों, पशु हों या साइबोर्ग हों, अपने नामों, उपनामों और बहु-नामों के साथ आवाज़ उठायें।
इस ख़त को बाँटिये, साँझा कीजिये, पब्लिक में इसे पढ़िए, प्रिंटर में छोड़ दीजिये। अपने लेख साँझा कीजिये, किताबें स्कैन कीजिये, अपनी फ़ाइलें अपलोड कीजिये। हमारी सांझी नॉलेज कुचली न जाए। किताबघरों की देखभाल कीजिये, मेटा-डेटा का ख़याल करिये, बैक-अप की हिफ़ाज़त कीजिये। फूलों को पानी दीजिये, ज्वाला-मुखियों की सफ़ाई कीजिये।
—दुशान बारोक, जोज़ेफ़ीन बेरी, बोडो बलाइज़, शॉन डॉकरे, केनेथ गोल्डस्मिथ, एंथनी इलेस, लॉरेंस लिआंग, सेबेस्टियन लुटगर्ट, पॉलिन वान मौरिक ब्रेकमन, मार्सेल मार्स, 'स्पीडरालेक्स', तोमिस्लाव मेडक, डरवा सेकुलिच, फ़ेमके स्नेल्टिंग...
30 नवम्बर 2015